वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगह
ज़िक्र-ए-हलाल पर भी है फ़तवा हराम का
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(662) Peoples Rate This
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
वाइ'ज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया
है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला
इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
हम कौन हैं एहतिमाम करने वाले
दिल देर-गुज़ारी से है आवंद-ए-नमक
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'
रहम कर मस्तों पे कब तक ताक़ पर रक्खेगा तू
किस तरह से गिर्या को न हो तुग़्यानी
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
गली से अपनी इरादा न कर उठाने का