किस तरह से गिर्या को न हो तुग़्यानी
है कश्ती-ए-दरिया-ए-करम तूफ़ानी
अब्बास के शाने भी गिरे मश्क के साथ
ऐ तिश्ना-लबी अब तो हो पानी पानी
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ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
दिल से मुझे आने की है आन की आहट
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
न लगती आँख तो सोने में क्या बुराई थी
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
रहम कर मस्तों पे कब तक ताक़ पर रक्खेगा तू
फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए