वाइ'ज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया
फैला गया चराँद शराब-ए-तहूर की
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Gulzar
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उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
क्या ज़िक्र-ए-वफ़ा जफ़ा किसी से न बनी
इस वक़्त ज़माने में बहम ऐसे हैं
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़
जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज
दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़