वो ज़िक्र था तुम्हारा जो इंतिहा से गुज़रा
ये क़िस्सा है हमारा जो ना-तमाम निकला
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थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
दुनिया का अजब रंग से देखा अंगेज़
दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद
ऐ अब्र कहाँ तक तिरे रस्ते देखें
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी