ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
ऐसा न हो सवाब के बदले अज़ाब हो
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ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है
फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
आप को खो के तुम को ढूँढ लिया
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
हुआ है इश्क़ में कम हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ऐसा
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है