मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
कोई याद आई और उन को जफ़ा क्या
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फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे
पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
न होगा हश्र महशर में बपा क्या
क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर
ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है