क्यूँकर करूँ मैं तर्क शराब-ओ-कबाब को
ज़ाहिद है याद हुक्म-ए-कुलू-वशरबू मुझे
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1011) Peoples Rate This
न होगा हश्र महशर में बपा क्या
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
किसी महबूब-ए-गंदुम-गूँ की उल्फ़त में गुज़रते हैं
आप को खो के तुम को ढूँढ लिया
पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं
ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का