किसी महबूब-ए-गंदुम-गूँ की उल्फ़त में गुज़रते हैं
दम अपना जिस्म से या ख़ुल्द से आदम निकलता है
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश
क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर
हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
न होगा हश्र महशर में बपा क्या
आप को खो के तुम को ढूँढ लिया
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत