नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
अज़ाब-ए-दुनिया है हम को क्या कम सवाब हम ले के क्या करेंगे
Parveen Shakir
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जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
हुआ है इश्क़ में कम हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ऐसा
किसी महबूब-ए-गंदुम-गूँ की उल्फ़त में गुज़रते हैं
फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे