पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
अब हुआ क्या जो बुरा हो गया अच्छा हो कर
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बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
फ़िराक़ में ख़ून-ए-दिल हैं पीते शराब हम ले के क्या करेंगे
पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
हुआ है इश्क़ में कम हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ऐसा
ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है