हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
रंग उड़ाएँगे हम अनादिल का
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किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर
पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
आप को खो के तुम को ढूँढ लिया