हुआ है इश्क़ में कम हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ऐसा
कि दिल को यार तो दिल यार को पसंद हुआ
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नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे
ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश