ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
दिल-ए-हज़ीं भी हमारा तिरा वुज़ू क्या है
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नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
आप को खो के तुम को ढूँढ लिया
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं
बुतान-ए-हिन्द मिरे दिल में हैं दर आए हुए
हँस के फूलों को वो करेंगे सुबुक
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
क्यूँकर करूँ मैं तर्क शराब-ओ-कबाब को