आप को खो के तुम को ढूँढ लिया
हौसला था ये मेरे ही दिल का
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फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का
जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ
क्यूँकर करूँ मैं तर्क शराब-ओ-कबाब को
ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत
न होगा हश्र महशर में बपा क्या
पहले क्या था जो किया करते थे तारीफ़ मिरी
ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो
ये बात बात पे ज़ाहिद जो टूट जाता है
नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
मुझे क्यूँ आज हिचकी आ रही है
जिस्म-ए-अनवर की लताफ़त की सना क्या कीजे