अपनी मर्ज़ी से भी हम ने काम कर डाले हैं कुछ
लफ़्ज़ को लड़वा दिया है बेशतर मअ'नी के साथ
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(906) Peoples Rate This
ईमाँ के साथ ख़ामी-ए-ईमाँ भी चाहिए
इक धूप सी तनी हुई बादल के आर-पार
फिर सर-ए-सुब्ह किसी दर्द के दर वा करने
जो बंदा-ए-ख़ुदा था ख़ुदा होने वाला है
जो नारवा था इस को रवा करने आया हूँ
मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं
इंकिसारी में मिरा हुक्म भी जारी था 'ज़फ़र'
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
बाहर से चट्टान की तरह हूँ
बीनाई से बाहर कभी अंदर मुझे देखे
खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे
जहाँ निगार-ए-सहर पैरहन उतारती है