इनकार Poetry (page 3)
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
सिराज औरंगाबादी
ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर
बाबू सि द्दीक़ निज़ामी
अदल-ए-जहाँगीरी
शिबली नोमानी
हो कैसे किसी वादे का इक़रार रजिस्टर्ड
शौक़ बहराइची
एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़
शारिक़ कैफ़ी
इक शहंशाह ने बनवा के....
शकील बदायुनी
गुल नहीं ख़ार समझते हैं मुझे
शाइस्ता सहर
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
हम कि इंसान नहीं आँखें हैं
शहज़ाद अहमद
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
शहरयार
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
शहरयार
मुनकिर-ए-हक़
शहराम सर्मदी
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता
शहनवाज़ ज़ैदी
मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
शाहिद कमाल
हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई
शाहिद कमाल
ब-हर्फ़-ए-सूरत इंकार तोड़ दी मैं ने
शाहिद कमाल
कैसा कैसा दर पस-ए-दीवार करना पड़ गया
शाहीन अब्बास
ऐसे रखती है हमें तेरी मोहब्बत ज़िंदा
शहबाज़ ख़्वाजा
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
शाह नसीर
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा
शाद अज़ीमाबादी
दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए
सीमाब अकबराबादी
ग़ुंचे से मुस्कुरा के उसे ज़ार कर चले
मोहम्मद रफ़ी सौदा
वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले
सरवर आलम राज़
उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ
सरवत हुसैन
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच
सरस्वती सरन कैफ़
शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे
सारा शगुफ़्ता
क़र्ज़
सारा शगुफ़्ता
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