इनकार Poetry (page 8)

दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा

दाग़ देहलवी

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं

भारत भूषण पन्त

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

हश्र पर वा'दा-ए-दीदार है किस का तेरा

बेखुद बदायुनी

बहुत ज़ोरों पे वी-सी-आर था कल शब जहाँ मैं था

बेदिल जौनपूरी

पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं

बशीर फ़ारूक़ी

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है

बाक़ी सिद्दीक़ी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन

बद्र वास्ती

उन्हें मुझ से शिकायत है

अज़रा नक़वी

ज़मीं की आँख से मंज़र कोई उतारते हैं

अज़ीज़ नबील

आएँगे नज़र सुब्ह के आसार में हम लोग

अज़ीज़ नबील

किस लिए ख़ुद को समझता है वो पत्थर की लकीर

अज़ीम हैदर सय्यद

कौन वाँ जुब्बा-ओ-दस्तार में आ सकता है

अज़ीम हैदर सय्यद

मैं जिस लम्हे को ज़िंदा कर रहा हूँ मुद्दतों से

अज़हर अदीब

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

अय्यूब ख़ावर

बुझने लगे नज़र तो फिर उस पार देखना

अय्यूब ख़ावर

ये देखा जाए वो कितने क़रीब आता है

अतीक़ुल्लाह

रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए

अतीक़ुल्लाह

एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था

अतीक़ुल्लाह

चलो सुरंग से पहले गुज़र के देखा जाए

अतीक़ुल्लाह

न-जाने कौन सी मजबूरियाँ हैं जिन के लिए

अतहर नासिक

सफ़र भी जब्र है नाचार करना पड़ता है

अतहर नासिक

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

ठहरे तो कहाँ ठहरे आख़िर मिरी बीनाई

असरारुल हक़ असरार

बे-सबब ख़ौफ़ से दिल मेरा लरज़ता क्यूँ है

असरा रिज़वी

किसी की साँस उखड़ती जा रही थी

अासिफ़ा ज़मानी

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