इनकार Poetry (page 7)

हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता

फ़ज़्ल ताबिश

जिसे पाने की ख़्वाहिश में जिए थे

फ़य्याज़ तहसीन

तमाशा फिर सर-ए-बाज़ार करना

फ़य्याज़ तहसीन

तू समझता है कि मैं कुछ भी नहीं तेरे बग़ैर

फ़रताश सय्यद

ये दिल-कथा है अदाकार तेरे बस में नहीं

फ़रताश सय्यद

इश्क़ हूँ जुरअत-ए-इज़हार भी कर सकता हूँ

फ़रताश सय्यद

मालूम करो

फर्रुख यार

मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक

फ़ारिग़ बुख़ारी

तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की

फ़रहत शहज़ाद

हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता

फ़रहत शहज़ाद

साँसें ना-हमवार मिरी

फ़रहत एहसास

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

फ़रहत एहसास

याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता

फ़ानी बदायुनी

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सर-ए-वादी-ए-सीना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चलती साँसों को जाम करने लगा

फ़हमी बदायूनी

ज़ीस्त में ग़म हैं हम-सफ़र फिर भी

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

दिल बुझ गया तो गर्मी-ए-बाज़ार भी नहीं

एजाज़ वारसी

अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया

एजाज़ गुल

थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में

एजाज़ गुल

इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या

एजाज़ गुल

गली से अपनी उठाता है वो बहाने से

एजाज़ गुल

दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़

एहसान दानिश

हवस से जिस्म को दो-चार करने वाली हवा

दिलावर अली आज़र

इंसाँ ब-यक निगाह बुरा भी भला भी है

द्वारका दास शोला

इस लिए वस्ल से इंकार है हम जान गए

दाग़ देहलवी

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया

दाग़ देहलवी

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