अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया
किया न उस ने भी इंकार याद आने से
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(808) Peoples Rate This
बे-सबब जम'अ तो करता नहीं तीर ओ तरकश
पेश-तर जुम्बिश-ए-लब बात से पहले क्या था
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ
कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच
पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरती
रह रहे हैं मकीं शबों के
हुआ के खेल में शिरकत के वास्ते मुझ को
कुछ देर ठहर और ज़रा देख तमाशा
उठा रखी है किसी ने कमान सूरज की
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
मश्क़-ए-सुख़न में दिल भी हमेशा से है शरीक