अतवार उस के देख के आता नहीं यक़ीं
इंसाँ सुना गया है कि आफ़ाक़ में रहा
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(747) Peoples Rate This
इस्तादा है जब सामने दीवार कहूँ क्या
चल रहा हूँ पेश-ओ-पस-मंज़र से उकताया हुआ
धूप जवानी का याराना अपनी जगह
दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में
ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के
महमिल है मतलूब न लैला माँगता है
फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में
रह रहे हैं मकीं शबों के
दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर
बे-सबब जम'अ तो करता नहीं तीर ओ तरकश
अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया
पेश-तर जुम्बिश-ए-लब बात से पहले क्या था