ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1152) Peoples Rate This
इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है
तक़ाज़ा हो चुकी है और तमन्ना हो रहा है
बाहर से चट्टान की तरह हूँ
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी
मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ
इंकिसारी में मिरा हुक्म भी जारी था 'ज़फ़र'
यहीं तक लाई है ये ज़िंदगी भर की मसाफ़त
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
मक़्बूल-ए-अवाम हो गया मैं
वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा
अपने सोए हुए सूरज की ख़बर ले जा कर