सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे
आदमी आदमी से जुदा ही रहा
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
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हालात-ए-ख़ूँ-आशाम से ग़ाफ़िल नहीं लेकिन
गुमाँ हद्द-ए-नज़र तक क्या था लेकिन क्या नज़र आया
इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए
ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए
गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है
दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत
बेहतर है अब दूर रहो तुम टेसू के इन फूलों से