गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है
अब अपना शहर भी लगता है अजनबी की तरह
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सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे
गुमाँ हद्द-ए-नज़र तक क्या था लेकिन क्या नज़र आया
हालात-ए-ख़ूँ-आशाम से ग़ाफ़िल नहीं लेकिन
दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत
बेहतर है अब दूर रहो तुम टेसू के इन फूलों से
ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए
इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए