हालात-ए-ख़ूँ-आशाम से ग़ाफ़िल नहीं लेकिन
ऐ ज़ुल्म तिरे हाथ पे बैअ'त नहीं करते
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इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए
ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए
दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत
सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे
गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है
बेहतर है अब दूर रहो तुम टेसू के इन फूलों से
गुमाँ हद्द-ए-नज़र तक क्या था लेकिन क्या नज़र आया