पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार
देवता अपनी जगह और आदमी अपनी जगह
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(774) Peoples Rate This
ख़ादिम-ए-उर्दू-ज़बाँ हूँ शाएरी मकतब मिरा
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई
हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए
माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ
मय-कशी का शबाब बाक़ी है
सुब्ह हैं सज्दे में हम तो शाम साक़ी के हुज़ूर
जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद
रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
किस लिए अब हयात बाक़ी है
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह