मय-कशी का शबाब बाक़ी है
होश है इज़्तिराब बाक़ी है
ज़िंदगी थोड़ी देर साथ न छोड़
जाम में कुछ शराब बाक़ी है
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क्या ज़िद है कि बरसात भी हो और नहीं भी हो
आसरा जब भी कोई टूटे है
हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह
ये महल ये माल ओ दौलत सब यहीं रह जाएँगे
नक़्श तीखे बाँकी चितवन दाँत मोती की क़तार
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच
अजनबी बन के हँसा करती है