हल्क़ा-ए-मय से किसी को भी निकलने न दिया
उठ के कुछ दूर भी मय-ख़ाने से चलने न दिया
दौर पर दौर चलाती रही इक मस्त नज़र
आज तो जाम भी साक़ी से बदलने न दिया
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
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खो के ख़ुद उन को पा के पीता हूँ
कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
लम्हा लम्हा मौत को भी ज़िंदगी समझा हूँ मैं
ख़ादिम-ए-उर्दू-ज़बाँ हूँ शाएरी मकतब मिरा
आसरा जब भी कोई टूटे है
पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार
अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच
उन को सज्दा कर लिया महबूब की तस्वीर जान
पूछा कैसे? तो हँस के फ़रमाया
समेट लो ज़रा आँचल कि रौशनी फैले
रात की रात बहुत देख ली दुनिया तेरी