पूछा कैसे? तो हँस के फ़रमाया
बस यूँही इक निगाह करना थी
और ये बन ठन के किस लिए आए
बोले दुनिया तबाह करना थी
Mir Taqi Mir
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सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए
जिस्म-ए-शफ़्फ़ाफ़ में शोला सा रवाँ हो जैसे
माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ
किस लिए अब हयात बाक़ी है
लम्हा लम्हा मौत को भी ज़िंदगी समझा हूँ मैं
नक़्श तीखे बाँकी चितवन दाँत मोती की क़तार
क्या ज़िद है कि बरसात भी हो और नहीं भी हो
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह
अब क्या बताएँ क्या था समाँ पैरहन के बीच
ग़म की तारीक फ़ज़ाओं से निकलने न दिया