गुलशन में न हम होंगे तो फिर सोग हमारा
गुल-पैरहन ओ ग़ुंचा-दहन करते रहेंगे
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नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं
जो सोते हैं नहीं कुछ ज़िक्र उन का वो तो सोते हैं
तुम चलो इस के साथ या न चलो
तज्दीद-ए-रिवायात-ए-कुहन करते रहेंगे
क़फ़स से छुटने पे शाद थे हम कि लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी मिलेगी
एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए
गिला किस से करें अग़्यार-ए-दिल-आज़ार कितने हैं
नई सहर के हसीन सूरज तुझे ग़रीबों से वास्ता क्या
तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
ये नहीं कि तू ने भेजा ही नहीं पयाम कोई