गनचह Poetry (page 6)

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

ज़फ़र

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

ज़फ़र

क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं

ज़फ़र

बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द

बदनाम नज़र

शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई

अज़्म बहज़ाद

अहद-नामा-ए-इमराेज़

अज़ीज़ क़ैसी

वतन-आशोब

असरार-उल-हक़ मजाज़

बहार आई है सोते को टुक जगा देना

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे

अरशद अली ख़ान क़लक़

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

अरशद अली ख़ान क़लक़

दफ़्तर जो गुलों के वो सनम खोल रहा है

अरशद अली ख़ान क़लक़

वो कारवान-ए-बहाराँ कि बे-दरा होगा

आरिफ़ अब्दुल मतीन

बजा कि कश्ती है पारा पारा थपेड़े तूफ़ाँ के खा रहा हूँ

आरिफ़ अब्दुल मतीन

अब तिरे हिज्र में यूँ उम्र बसर होती है

अनवापुल हसन अनवार

मेरी पहली नज़्म

अनवर मसूद

उसे तो पास-ए-ख़ुलूस-ए-वफ़ा ज़रा भी नहीं

अनवर मसूद

दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है

अनवर मोअज़्ज़म

वो ग़ुंचा हूँ जो बिन खिले मुरझाए चमन में

अनीसा बेगम

अरमाँ को छुपाने से मुसीबत में है जाँ और

आनंद नारायण मुल्ला

सबा बनाते हैं ग़ुंचा-दहन बनाते हैं

अमीर हम्ज़ा साक़िब

जिस ग़ुंचा-लब को छेड़ दिया ख़ंदा-ज़न हुआ

अमीर मीनाई

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी

अमीर मीनाई

हर इक मक़ाम से आगे गुज़र गया मह-ए-नौ

अल्लामा इक़बाल

शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो

अली सरदार जाफ़री

ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया

अली अकबर नातिक़

मोहब्बत क्या मोहब्बत का सिला क्या

अलीम अख़्तर

यादें

अख़्तर-उल-ईमान

ओ देस से आने वाले बता

अख़्तर शीरानी

मिरी आँखों से ज़ाहिर ख़ूँ-फ़िशानी अब भी होती है

अख़्तर शीरानी

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