शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है

बादशाही जिसे देता है ख़ुदा देता है

मेरा साक़ी वो मय-ए-होश-रुबा देता है

सारे आलम के बखेड़ों से छुड़ा देता है

कौन कहता है कि होते हैं ख़ुश-अंदाज़ हसीं

चाहने वाला तरहदार बना देता है

मुनइमों को नहीं ने'मत में ये लज़्ज़त हासिल

सूखा टुकड़ा जो तवक्कुल का मज़ा देता है

इस में सौ तरह की क़ुदरत है वो मजबूर नहीं

चाहता है तो मुक़द्दर से सिवा देता है

तेग़-ए-क़ातिल मिरी गर्दन से लिपट जाती है यूँ

जैसे बिछड़े को गले कोई मिला देता है

शोर-ए-ख़लख़ाल तिरा ऐ सनम-ए-हश्र-ख़िराम

फ़ित्ना-ए-ख़ुफ़ता-ए-महशर को जगा देता है

क़ुल्ज़ुम-ए-रहमत-ए-हक़ जोश पे जब आता है

घाट पर कश्ती-ए-उम्मीद लगा देता है

एक ही शब का है मेहमाँ कि चटक कर ग़ुंचा

सुब्ह-दम कूच का नक़्क़ारा बजा देता है

किस क़दर दिल है चुटीला कि दम-ए-सैर-ए-चमन

नाला-ए-बुलबुल-ए-नाशाद रुला देता है

सोज़-ए-फ़ुर्क़त भी कम ओ साइक़ा-ए-क़हर नहीं

ख़िरमन-ए-हस्ती-ए-उश्शाक़ जला देता है

हुस्न-ए-अंदाज़ भी शायद कोई मश्शाता है

आदमी को ये परी-ज़ाद बना देता है

उन जफ़ा-कारों की उल्फ़त नहीं आसाँ कैसी

दिल जो देता है उन्हें जान लड़ा देता है

क्या बशर रोके कहे हाल-ए-दिल-ए-ज़ार अपना

क़हक़हों में वो परी-ज़ाद उड़ा देता है

बाग़बान-ए-गुल-ए-मज़मूँ है हक़ीक़त में 'क़लक़'

जब ग़ज़ल पढ़ता है इक बाग़ खिला देता है

(1043) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai In Hindi By Famous Poet Arshad Ali Khan Qalaq. Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai is written by Arshad Ali Khan Qalaq. Complete Poem Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai in Hindi by Arshad Ali Khan Qalaq. Download free Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai Poem for Youth in PDF. Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Sharaf Insan Ko Kab Zill-e-huma Deta Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.