छेड़ा अगर मिरे दिल-ए-नालाँ को आप ने
फिर भूल जाइएगा बजाना सितार का
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तिरे होंठों से शर्मा कर पसीने में हुआ ये तर
ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख
रुख़ तह-ए-ज़ुल्फ़ है और ज़ुल्फ़ परेशाँ सर पर
तिलाई रंग जानाँ का अगर मज़मून लिखूँ ख़त में
ख़ुश-क़दों से कभी आलम न रहेगा ख़ाली
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए
बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहार
पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का