लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

मर मर गए रक़ीब लहू डाल डाल के

बे-यार दूद-ओ-लुक्का मिरे आसमाँ बना

साक़ी बना दे माह पियाला उछाल के

बिगड़े हुए हो आज बनावट न कीजिए

ऐ जान छुपते हैं कहीं तेवर मलाल के

पहुँचा दिया है दम में लब-ए-बाम-ए-यार तक

क़ाइल हैं हम तो अपनी कमंद-ए-ख़याल के

दुनिया-ए-दूँ को आँख उठा कर न देखिए

आशिक़ जवान होते हैं कब पीर-ज़ाल के

अपने ही सिलसिले में है बैअत उन्हें नसीब

ज़ुल्फ़ों के सब फ़क़ीर हमारे हैं बाल के

टूटें न ख़ार और कहीं फूटें न आबले

वहशत में पाँव रखते हैं अपना सँभाल के

वहशत में अपने हाथ से पहुँचा हमें गज़ंद

पछताए आस्तीन में हम साँप पाल के

हम उन से और वो हम से दम-ए-सुल्ह थे ख़जिल

छींटे लड़ा किए अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

बे-यार मय-कशी भी जो कीजे तो ग़म के साथ

जाम-ओ-सुबू बनाइए गर्द-ए-मलाल के

दिल में तुम्हारी याद भी है जान लीजिए

तीर-ए-निगह लगाइएगा देख-भाल के

दाँतों में मिस्सी मल के अगर कीजिए ख़ेलाल

नज़रों में मैल सुर्मा हों तिनके ख़ेलाल के

रफ़्तार-ए-किल्क क़हर है आफ़त सरीर-ए-किल्क

मज़मूँ जो लिख रहा हूँ तिरे बोल-चाल के

हम-मशरबों में चल के 'क़लक़' मय-कशी करो

झगड़े वहाँ नहीं हैं हराम-ओ-हलाल के

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