बे-सबब ग़ुंचे चटकते नहीं गुलज़ारों में
फिर रहा है ये ढिंढोरा तिरी रानाई का
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यूँ रूह थी अदम में मिरी बहर-ए-तन उदास
राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ओ ज़ाहिर-परस्त
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
शरफ़ इंसान को कब ज़िल्ल-ए-हुमा देता है
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से