बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
करते हैं ये गुनाह भी रहमत के ज़ोर पर
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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बहार आते ही ज़ख़्म-ए-दिल हरे सब हो गए मेरे
फँस गया है दाम-ए-काकुल में बुतान-ए-हिन्द के
हम उन से और वो हम से दम-ए-सुल्ह थे ख़जिल
बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे
फिर मुझ से इस तरह की न कीजेगा दिल-लगी
परतव पड़ा जो आरिज़-ए-गुलगून-ए-यार का
छेड़ा अगर मिरे दिल-ए-नालाँ को आप ने
सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में
गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का