गनचह Poetry (page 2)

अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है

सिराज औरंगाबादी

ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल

सिराज औरंगाबादी

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

रस्म-ए-गिर्या भी उठा दी हम ने

शोहरत बुख़ारी

गीली मिट्टी से बदन बनते हुए उम्र लगी

शमशाद शाद

हंगामा है न फ़ित्ना-ए-दौराँ है आज-कल

शेरी भोपाली

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

शरीफ़ कुंजाही

मुश्तइ'ल हो गया वो ग़ुंचा-दहन दानिस्ता

शम्स रम्ज़ी

हुस्न की बिजलियाँ अल-अमाँ अल-अमाँ

शम्स इटावी

मुझे दैर से तअल्लुक़ न हरम से आश्नाई

शमीम करहानी

ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ

शकील बदायुनी

उन से उम्मीद-ए-रू-नुमाई है

शकील बदायुनी

हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

चमन में दहर के हर गुल है कान की सूरत

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा

शाहिद मीर

ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था

शाहीन बद्र

तलाश

शहाब जाफ़री

चमन में ग़ुंचा मुँह खोले है जब कुछ दिल की कहने को

शाह नसीर

तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या

शाह नसीर

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

शमीम-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुअम्बर जो रू-ए-यार से लूँ

शाह नसीर

सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया

शाह नसीर

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

शाह नसीर

मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया

शाह नसीर

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

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