चमन में ग़ुंचा मुँह खोले है जब कुछ दिल की कहने को
नसीम-ए-सुब्ह भर रखती है बातों में लगा लिपटा
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बजाए आब मय-ए-नर्गिसी पिला मुझ को
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
तार-ए-मिज़्गाँ पे रवाँ यूँ है मिरा तिफ़्ल-ए-सरिश्क
चमन में देखते ही पड़ गई कुछ ओस ग़ुंचों पर
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर
'नसीर' अब हम को क्या है क़िस्सा-ए-कौनैन से मतलब