तार-ए-मिज़्गाँ पे रवाँ यूँ है मिरा तिफ़्ल-ए-सरिश्क
नट रसन पर चले है जैसे कोई रख कर पाँव
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(500) Peoples Rate This
इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
पिस्ताँ को तेरे देख के मिट जाए फिर हुबाब
मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता
जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
ये चर्ख़-ए-नीलगूँ इक ख़ाना-ए-पुर-दूद है यारो
चश्म में कब अश्क भर लाते हैं हम
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा
दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर
आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्ना