पिस्ताँ को तेरे देख के मिट जाए फिर हुबाब
दरिया में ता-ब-सीना अगर तू नहाए सुब्ह
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क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
हो गुफ़्तुगू हमारी और अब उस की क्यूँकि आह
ये चर्ख़-ए-नीलगूँ इक ख़ाना-ए-पुर-दूद है यारो
सर-बुलंदी को यहाँ दिल ने न चाहा मुनइम
सरज़मीं ज़ुल्फ़ की जागीर में थी इस दिल की
यारो नहीं इतना मुझे क़ातिल ने सताया
सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
तिश्नगी ख़ाक बुझे अश्क की तुग़्यानी से
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
पूछने वालों को क्या कहिए कि धोके में नहीं
बसान-ए-आइना हम ने तो चश्म वा कर ली
मैं ने बिठला के जो पास उस को खिलाया बीड़ा