सय्याद के जिगर में करे था सिनाँ का काम
मुर्ग़-ए-क़फ़स के सर पे ये एहसान-ए-नाला था
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लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
लगा न दिल को तू अपने किसी से देख 'नसीर'
'नसीर' उस ज़ुल्फ़ की ये कज-अदाई कोई जाती है
बोसा-ए-ख़ाल-ए-लब-ए-जानाँ की कैफ़िय्यत न पूछ
जूँ मौज हाथ मारिए क्या बहर-ए-इश्क़ में
चमन में देखते ही पड़ गई कुछ ओस ग़ुंचों पर
ये दाग़ नहीं तन पर मैं देखने को तेरे
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं
दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था
दिन रात यहाँ पुतलियों का नाच रहे है
ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना