जूँ मौज हाथ मारिए क्या बहर-ए-इश्क़ में
साहिल 'नसीर' दूर है और दम नहीं रहा
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(432) Peoples Rate This
न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का
तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या
दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ
न हाथ रख मिरे सीने पे दिल नहीं इस में
ज़ुल्फ़ का क्या उस की चटका लग गया
जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम
आमद-ओ-शुद कूचे में हम उस के क्यूँ न करें मानिंद-ए-नफ़स
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन