न हाथ रख मिरे सीने पे दिल नहीं इस में
रखा है आतिश-ए-सोज़ाँ को दाब के घर में
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कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं
बादा-कशी के सिखलाते हैं क्या ही क़रीने सावन-भादों
गले में तू ने वहाँ मोतियों का पहना हार
तलब में बोसे की क्या है हुज्जत सवाल दीगर जवाब दीगर
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
कोई ये शैख़ से पूछे कि बंद कर आँखें
दिल-ए-पुर-आबला लाया हूँ दिखाने तुम को
जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन