हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन
दिल से गर सरज़द हमारे नाला-ए-मौज़ूँ हुआ
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दैर-ओ-काबा में तफ़ावुत ख़ल्क़ के नज़दीक है
चमन में ग़ुंचा मुँह खोले है जब कुछ दिल की कहने को
दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं
मेरे नाले के न क्यूँ हो चर्ख़-ए-अख़्ज़र ज़ेर-ए-पा
जब कि ले ज़ुल्फ़ तिरी मुसहफ़-ए-रुख़ का बोसा
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
'नसीर' उस ज़ुल्फ़ की ये कज-अदाई कोई जाती है
गर्दिश-ए-चर्ख़ नहीं कम भी हंडोले से कि महर
इक आबला था सो भी गया ख़ार-ए-ग़म से फट
दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का