शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
हुस्न-ए-निय्यत से मुसल्ले पे वज़ू टूट गया
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हम हैं और मजनूँ अज़ल से ख़ाना-पर्वर्द-ए-जुनूँ
देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया
फ़ुर्सत एक दम की है जूँ हबाब पानी याँ
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
सरज़मीं ज़ुल्फ़ की जागीर में थी इस दिल की
रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
पिस्ताँ को तेरे देख के मिट जाए फिर हुबाब
इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है