हम हैं और मजनूँ अज़ल से ख़ाना-पर्वर्द-ए-जुनूँ
उस ने की सहरा-नवर्दी हम ने गलियाँ देखियाँ
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(372) Peoples Rate This
गले में तू ने वहाँ मोतियों का पहना हार
सुपर रखता हूँ मैं भी आफ़्ताबी साग़र-ए-मय की
बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा
आ के सलासिल ऐ जुनूँ क्यूँ न क़दम ले ब'अद-ए-क़ैस
मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'
हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
अब्र-ए-नैसाँ की भी झड़ जाएगी पल में शेख़ी
चमन में देखते ही पड़ गई कुछ ओस ग़ुंचों पर
ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
चश्म में कब अश्क भर लाते हैं हम
बयाबाँ मर्ग है मजनून-ए-ख़ाक-आलूदा-तन किस का
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम