गले में तू ने वहाँ मोतियों का पहना हार
यहाँ पे अश्क-ए-मुसलसल गले का हार रहा
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हम हैं और मजनूँ अज़ल से ख़ाना-पर्वर्द-ए-जुनूँ
मैं उस की चश्म का बीमार-ए-ना-तवाँ हूँ तबीब
'नसीर' उस ज़ुल्फ़ की ये कज-अदाई कोई जाती है
क़दम न रख मिरी चश्म-ए-पुर-आब के घर में
जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े
बजाए आब मय-ए-नर्गिसी पिला मुझ को
शौक़-ए-कुश्तन है उसे ज़ौक़-ए-शहादत है मुझे
हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
सर-ए-मिज़्गाँ ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं
जुदा नहीं है हर इक मौज देख आब के बीच
सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा