जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े
उर्स-ए-मजनूँ की है धूम आज बयाबान में क्या
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वक़्त-ए-नमाज़ है उन का क़ामत-गाह-ए-ख़दंग-ओ-गाह-ए-कमाँ
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
सौ बार बोसा-ए-लब-ए-शीरीं वो दे तो लूँ
बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा
दिल जल्वा-गाह-ए-सूरत-ए-जानाना हो गया
बोसा-ए-ख़ाल-ए-लब-ए-जानाँ की कैफ़िय्यत न पूछ
तिश्नगी ख़ाक बुझे अश्क की तुग़्यानी से
जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल
मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का