सर-ए-मिज़्गाँ ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं
ये सच है जो गरजते हैं वो बादल कम बरसते हैं
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(486) Peoples Rate This
दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
ये निगल जाएगी इक दिन तिरी चौड़ाई चर्ख़
सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ
तिरे दाँत सारे सफ़ेद हैं पए-ज़ेब पान से मल कर आ
उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ
मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'
आईना ले के देख ज़रा अपने हुस्न को
उधर अब्र ले चश्म-ए-नम को चला
ख़याल-ए-नाफ़-ए-बुताँ से हो क्यूँ कि दिल जाँ-बर