ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
जिस से है रंग-ए-गुल-ए-मअनी-ए-मुश्किल टपका
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(400) Peoples Rate This
ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
फ़ुर्सत एक दम की है जूँ हबाब पानी याँ
रेख़्ता के क़स्र की बुनियाद उठाई ऐ 'नसीर'
उधर अब्र ले चश्म-ए-नम को चला
कम नहीं है अफ़सर-शाही से कुछ ताज-ए-गदा
लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
टाँकों से ज़ख़्म-ए-पहलू लगता है कंखजूरा
तिरे है ज़ुल्फ़ ओ रुख़ की दीद सुब्ह-ओ-शाम आशिक़ का
ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
आँखों से तुझ को याद मैं करता हूँ रोज़-ओ-शब
मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर'