आँखों से तुझ को याद मैं करता हूँ रोज़-ओ-शब
बे-दीद मुझ से किस लिए बेगाना हो गया
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सब पे रौशन है कि राह-ए-इश्क़ में मानिंद-ए-शम्अ
तिश्नगी ख़ाक बुझे अश्क की तुग़्यानी से
मता-ए-दिल बहुत अर्ज़ां है क्यूँ नहीं लेते
ख़याल-ए-नाफ़-ए-बुताँ से हो क्यूँ कि दिल जाँ-बर
क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या
सर-ए-मिज़्गाँ ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं
पामाल-ए-राह-ए-इश्क़ हैं ख़िल्क़त की खा ठोकर भी हम
जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़
शैख़-साहिब की नमाज़-ए-सहरी को है सलाम
न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम